bhairav kavach - An Overview

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ದೀಪ್ತಾಕಾರಂ ವಿಶದವದನಂ ಸುಪ್ರಸನ್ನಂ ತ್ರಿನೇತ್ರಂ

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।



साधक कुबेर के जीवन की तरह जीता है और हर जगह विजयी होता है। साधक चिंताओं, दुर्घटनाओं और बीमारियों से मुक्त जीवन जीता है।



।। इति बटुक भैरव तन्त्रोक्तं भैरवकवचम् ।।

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः । 

सर्वदा पातु ह्रीं बीजं बाह्वोर्युगलमेव च ॥



रक्षतु द्वारमूले च दशदिक्षु समन्ततः ॥ २०॥





कालीपार्श्वस्थितो देवः सर्वदा bhairav kavach पातु मे मुखे ॥ २३॥

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